10 लाख नहीं, ₹25 लाख और पीड़ित परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दे सरकार : इष्टवाल

देहरादून : उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में जंगली जानवरों, विशेषकर गुलदारों और बाघों का आतंक थमने का नाम नहीं ले रहा। हाल ही में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और वन मंत्री सुबोध उनियाल ने जंगली जानवरों के हमले में जनहानि के मुआवजे की राशि को ₹6 लाख से बढ़ाकर ₹10 लाख करने की घोषणा की है। हालांकि, स्थानीय लोग इस राशि को बढ़ाकर ₹25 लाख करने और पीड़ित परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की मांग कर रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यह केवल मुआवजे का सवाल नहीं, बल्कि उनके जीवन और सुरक्षा के अधिकार का मुद्दा है।
पिछले पांच दिन पहले ढंगसोली ग्रामसभा में एक महिला पर सुबह-सुबह गुलदार ने हमला किया। वहीं, आज सुबह धरासू में घास काटने गई एक अन्य महिला को बाघ दिखाई दिया, जिसके बाद वह भयभीत होकर किसी तरह अपनी जान बचाकर भाग निकली। ऐसी घटनाएं पहाड़ी क्षेत्रों में जनसुरक्षा की गंभीर स्थिति को उजागर करती हैं। ग्रामीणों का कहना है कि जंगली जानवरों के डर से वे अपने ही घरों में कैद होकर रह गए हैं। सुबह-शाम घर से बाहर निकलना भी जोखिम भरा हो गया है, जिसके चलते लोग मजबूरन गांव छोड़कर पलायन कर रहे हैं।
स्थानीय निवासियों का कहना है कि पहाड़ी लोग अपने गांवों में रहना चाहते हैं, अपने घरों को बेहतर बनाना चाहते हैं, लेकिन जब सुरक्षा ही नहीं मिलेगी, तो वे कैसे गांवों में टिके रहेंगे? एक ग्रामीण ने सवाल उठाया, “क्या जंगली जानवरों की जान की कीमत इंसानों से अधिक है? आखिर कब तक हम गुलदारों के भय में जीने को मजबूर रहेंगे?”
सरकार द्वारा वन्यजीव संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयास सराहनीय हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए भी ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। विशेषज्ञों और स्थानीय लोगों ने वन अधिनियम में संशोधन की मांग की है, ताकि ग्रामीणों को जनहानि, फसल क्षति और निरंतर भय से मुक्ति मिल सके। इसके साथ ही क्षेत्रीय रेंजर अधिकारियों को तत्काल कार्रवाई का अधिकार देने की मांग भी उठ रही है, ताकि उन्हें हर बार उच्च अधिकारियों से अनुमति लेने की जरूरत न पड़े।
ग्रामीणों ने यह भी सुझाव दिया है कि वन्यजीवों को सुरक्षित क्षेत्रों में रखा जाए, जहां से वे मानव बस्तियों में प्रवेश न कर सकें। स्थानीय लोगों का कहना है कि सरकार को जनहित और वन्यजीव संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित करते हुए ऐसी नीति बनानी चाहिए, जो मानव जीवन की सुरक्षा को प्राथमिकता दे।
इस मुद्दे पर तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है, ताकि पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोग बिना डर के अपने गांवों में जीवन यापन कर सकें। ग्रामीणों की मांग है कि सरकार उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करे और पलायन की इस मजबूरी को रोके।
What's Your Reaction?






