उरई : जल संरक्षण की पुरातन परंपरा को समर्पित अनूठी वीथिका का आयोजन ,मिट्टी से लेकर चांदी पात्रों का प्रदर्शन

उरई : जल संरक्षण की पुरातन परंपरा को समर्पित अनूठी वीथिका का आयोजन, मिट्टी से लेकर चांदी पात्रों का प्रदर्शन
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उरई। इस तपती उमस भरी गर्मी में जल ही एकमात्र अवयव है, जो इस तपन और उमस से राहत देने का कार्य करता है। इसलिए इसके संरक्षण का उत्तरदायित्व भी सम्मिलित रूप से हम सभी का है। जल संरक्षण हेतु प्राचीन काल तथा वर्तमान समय में जिन पात्रों का उपयोग किया जाता था, उसकी एक अनूठी वीथिका इन्टैक उरई अध्याय, प्रान्तीय धरोहर समिति संस्कार भारती एवं भारत विकास परिषद स्वामी विवेकानंद शाखा के संयुक्त तत्वावधान में चूडी वाली गली स्थित श्रीमती सन्ध्या पुरवार के आवास पर लगाई गई।
जल संरक्षण की पुरानी तकनीकें
शंख ध्वनि के बीच इस वीथिका का शुभारम्भ राजकीय महिला चिकित्सालय की वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डा संजीव प्रभाकर जी ने प्रथम पूज्य श्री गणेश जी की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलित कर किया। वीथिका के उद्घाटन के दौरान डा0 संजीव प्रभाकर ने कहा कि आज यहां आकर पुरानी स्मृतियां पुनः चैतन्य हो गई। उन्होंने स्वरचित एक कविता भी पढ़ी जिसमें उन्होंने कहा "विकास की बहुत बड़ी कीमत चुकाई है हमने, विरासत को भूलकर। आओ अपनी विरासत बचा लें।"
इस जल पात्र वीथिका में मिट्टी, तांबा, पीतल, गिलट, चांदी आदि से निर्मित विभिन्न जल पात्रों का प्रदर्शन किया गया है। जल संग्रहण के लिए प्रदर्शित सौ साल पुराने हण्डा, बटोला, जंगाल, भगाना, टंकी, मटका, गगरी, सुराही, नाद, केन घटिया आदि वस्तुओं ने दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया। वहीं जल के उपयोग हेतु विभिन्न आकार प्रकार के लोटे, लुटियां, यांत्रिक लोटे, गिलास, कुल्हड आदि का भी प्रदर्शन किया गया।
संस्कृति और विरासत का संगम
वीथिका का मुख्य आकर्षण जल ही जीवन है पर आधारित सनातनी वांग्मय में उल्लिखित श्री विष्णु के प्रथम मत्स्य अवतार एवं उभयचरी द्वितीय कूर्म अवतार के शंख रहे। इस वीथिका में मत्स्य तथा कूर्म से संबंधित आचमनियां और बोतल खोलक भी प्रदर्शित की गई। जल के देवता वरुण के सम्मान में सजाए गए जल पात्रों की प्रभावशाली प्रदर्शनी ने सबका मन मोह लिया।
अन्त में, डा हरी मोहन पुरवार तथा डा उमाकांत गुप्त ने मुख्य अतिथि डा0 संजीव को अंग वस्त्र उढ़ाकर सम्मानित किया। श्रीमती ऊषा सिंह निरंजन, श्रीमती मन्जू विजय रावत एवं श्रीमती सन्ध्या पुरवार ने सम्मान समारोह में स्मृति चिन्ह भेंट किए। समारोह के समापन पर श्रीमती सन्ध्या जी ने सभी आगंतुकों को बुंदेलखंडी मट्ठा और स्वल्पाहार परोसा।
इस कार्यक्रम में डा0 रचना रमणीक श्रीवास्तव, श्रीमती संगीता अरविन्द पाठक, श्रीमती प्रियंका अग्रवाल, और अन्य विशिष्ट उपस्थितियों ने जल संरक्षण के महत्व को उजागर किया। इस प्रकार, इस अद्वितीय वीथिका ने पुरानी तकनीकों और परंपराओं को जीवित रखने का एक महत्वपूर्ण कार्य किया है।
जल preservation की आवश्यकता सभी को समझनी चाहिए और इस दिशा में हमें सामूहिक रूप से प्रयास करना चाहिए। प्राचीन जल पात्रों की प्रदर्शनी ने यह संदेश दिया कि जल न केवल जीवन का स्रोत है बल्कि हमारी संस्कृति का भी अभिन्न हिस्सा है।
हमारी आशा है कि यह आयोजन अन्य स्थानों पर भी जल संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाने में सहायक होगा। भविष्य में भी ऐसे आयोजनों की आवश्यकता बनी रहेगी ताकि हमारी जल धरोहर को बचाया जा सके।
इस अद्वितीय जल संरक्षण वेथिका की जानकारी के लिए हमारे साथ बने रहें, और लेटेस्ट अपडेट्स के लिए www.asarkari.com पर जाएं।
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