निरस्त होगा उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड, मदरसों व कावेंट स्कूलों की पढ़ाई पर अब सरकार की नजर

निरस्त होगा उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड, मदरसों व कावेंट स्कूलों की पढ़ाई पर अब सरकार की नजर
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लेखक: सृष्टि शर्मा, अनुति चौधरी, टीम asarkari
देहरादून (दस्तक ब्यूरो)। उत्तराखंड सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए मदरसा शिक्षा बोर्ड को निरस्त करने का निर्णय लिया है। सीएम पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में यह फैसला लिया गया, जिसके अनुसार उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड का अस्तित्व एक जुलाई 2026 से समाप्त हो जाएगा। यह बदलाव न केवल स्थानीय शिक्षा पद्धति पर प्रभाव डालेगा बल्कि अन्य राज्यों के लिए भी एक मिसाल बनेगा।
मदरसा शिक्षा प्रणाली में बदलाव का कारण
मुख्यमंत्री द्वारा इस निर्णय का उद्देश्य शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना है। प्रदेश में अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों में शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए अब एक नया उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण स्थापित किया जाएगा। यह प्राधिकरण न केवल अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को मान्यता देने का अधिकार रखेगा बल्कि उनकी अनुदान प्रक्रिया को भी सुगम बनाएगा।
नए विधेयक के प्रमुख बिंदु
उत्तराखंड अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान विधेयक 2025 के तहत सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और पारसी धर्म से जुड़े शिक्षण संस्थानों को भी अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाएगा। इस विधेयक से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण बिंदु निम्नलिखित हैं:
- उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण का गठन किया जाएगा।
- इस प्राधिकरण द्वारा छात्रों के निष्पक्ष मूल्यांकन की व्यवस्था एवं पारदर्शिता सुनिश्चित की जाएगी।
- किसी भी संस्थान को मान्यता प्राप्त करने के लिए भारतीय ट्रस्ट कानून, कंपनी कानून या सोसाइटी अधिनियम के तहत पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा।
- अगर संस्थान में पारदर्शिता की कमी पाई गई तो उसकी मान्यता को रद्द किया जा सकता है।
सीखने की प्रक्रिया पर प्रभाव
सूबे के अल्पसंख्यक समुदाय के शिक्षा संस्थानों में पाठ्यक्रम में गुरुमुखी और पाली भाषा की पढ़ाई की अभियांत्रिकी की जाएगी। इससे न केवल शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा, बल्कि उत्तराखंड का शिक्षा परिदृश्य भी और समृद्ध होगा।
भविष्य की दृष्टि
उत्तराखंड विधानसभा का आगामी सत्र 19 अगस्त से आरंभ होने जा रहा है। सरकार का मानना है कि इस विधेयक के कानून बनने से न केवल शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा, बल्कि इससे अल्पसंख्यक समुदाय के संवैधानिक अधिकार भी सुरक्षित रहेंगे। इस बदलाव का उद्देश्य शिक्षा क्षेत्र में पारदर्शिता लाना है और समान नागरिक संहिता व नकल कानून की तरह यह कदम अन्य राज्यों के लिए भी एक मिसाल बनेगा।
इस ऐतिहासिक निर्णय पर राज्य की जनता में मिश्रित प्रतिक्रियाएँ हैं। कुछ इसे सकारात्मक परिवर्तन मानते हैं तो कुछ इसे सरकारी हस्तक्षेप के रूप में देखते हैं। उत्तराखंड सरकार का यह निर्णय निश्चित रूप से भविष्य में शिक्षा क्षेत्र को नया दिशा देने वाला साबित होगा।
यद्यपि अब तक मुस्लिम समुदाय से जुड़े शिक्षण संस्थानों को अल्पसंख्यक का दर्जा मिलता था, नए विधेयक के माध्यम से यह दायरा बढ़ाया जाएगा। अब सभी धार्मिक समुदायों के शिक्षण संस्थान इस प्राधिकरण की निगरानी में शिक्षा प्रदान करेंगे।
अंत में, यह निर्णय न केवल उत्तराखंड के शिक्षा क्षेत्र में एक नया युग शुरू करेगा, बल्कि अन्य राज्यों के लिए भी एक सकारात्मक दृष्टांत बनेगा। इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए, कृपया [यहाँ क्लिक करें](https://asarkari.com)।
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