पंचायत चुनाव: हाईकोर्ट ने कहा, चुनाव नहीं टालना चाहते, लेकिन नियमों का पालन जरूरी, कल आ सकता है अंतिम फैसला

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पंचायत चुनावों में हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण बयान
रैबार डेस्क: पंचायत चुनावों का मामला अब उच्च न्यायालय में पहुँच गया है। राज्य सरकार आरक्षण रोस्टर के विवाद में कोर्ट के समक्ष खड़ी है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि वे चुनाव टालना नहीं चाहते, लेकिन नियमों के पालन में कोई कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। यह मामला कल पुनः सुनवाई के लिए आएगा, जहाँ अंतिम फैसला भी आ सकता है।
आरक्षण रोस्टर पर विवाद
पंचायत चुनावों में आरक्षण व्यवस्था को लेकर कई याचिकाएं हाईकोर्ट में दायर की गई हैं, जिनकी सुनवाई चीफ जस्टिस जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की बेंच कर रही है। आरक्षण का नोटिफिकेशन जारी न होने के बावजूद चुनावी कार्यक्रम की घोषणा पर कोर्ट ने रोक लगा दी थी। यह कदम तब उठाया गया जब याचिकाकर्ताओं द्वारा इस मुद्दे पर गंभीरता से संज्ञान लेने की मांग की गई।
सुनवाई का घटनाक्रम
गुरुवार को सुनवाई के दौरान सरकार ने कोर्ट में आरक्षण का रोस्टर पेश किया। सरकारी वकील ने दलील दी कि आरक्षण में किसी प्रकार का रिपीटीशन नहीं किया गया है। इसके विपरीत, याचिकाकर्ता के वकील ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि लगभग 40 प्रतिशत सीटों पर आरक्षण का रिपीटीशन किया गया है, जिससे गरीब और वंचित वर्ग के लोगों का हक मारा जा रहा है। इस पर चीफ जस्टिस ने माना कि प्राइमा फेसी उनकी बात सही नजर आ रही है।
आगे की संभावनाएँ
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से समय मांगा ताकि वे रोस्टर का अध्ययन कर सकें। कोर्ट ने उन्हें कल तक का समय दिया है। इस बीच, सरकार ने चुनाव प्रक्रिया पर लगी रोक हटाने का अनुरोध किया। हाईकोर्ट का जवाब था कि उनकी मंशा चुनाव को टालने की नहीं है, लेकिन नियमों का पालन करना अनिवार्य है। याचिकाकर्ताओं ने उत्तराखंड पंचायत राज अधिनियम और संविधान के अनुच्छेद 243 टी, डी का जिक्र करते हुए कहा कि आरक्षण में रोस्टर का होना अनिवार्य है।
निष्कर्ष
उच्च न्यायालय का यह निर्णय सभी पक्षों के लिए एक महत्वपूर्ण संदर्भ बन सकता है। सभी को यह समझना होगा कि चुनाव प्रक्रिया को सुचारु रूप से आगे बढ़ाने के लिए नियमों का पालन करना आवश्यक है और यदि इस मुद्दे का सही समाधान नहीं निकलता है, तो इससे चुनाव की प्रक्रिया में देरी हो सकती है। हम सभी की नजरें कल होने वाली अंतिम सुनवाई पर टिकी हैं।
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