महज उम्रदराज होना ही लाचार बहु-बच्चों को बेघर करने का लाईसेंस नहीःडीएम

Aug 20, 2025 - 18:30
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महज उम्रदराज होना ही लाचार बहु-बच्चों को बेघर करने का लाईसेंस नहीःडीएम
महज उम्रदराज होना ही लाचार बहु-बच्चों को बेघर करने का लाईसेंस नहीःडीएम

महज उम्रदराज होना ही लाचार बहु-बच्चों को बेघर करने का लाईसेंस नहीःडीएम

देहरादून, 20 अगस्त 2025 (सू.वि.) - जनहित में दी जाने वाली विभिन्न सुविधाओं की आड़ में कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए कानून का दुरुपयोग करने से बाज नहीं आ रहे हैं। हाल ही में एक मामला सामने आया है, जिसमें देहरादून के जिलाधिकारी ने स्पष्ट रूप से कहा कि किसी के उम्रदराज होने मात्र से उनके बहु या बच्चों को बेघर करना सही नहीं है। इस मामले में एक राजपत्रित पिता ने अपने पुत्र और बहु के खिलाफ भरण पोषण अधिनियम के तहत याचिका दायर की थी, जिसे डीएम ने खारिज कर दिया।

स्पष्ट निर्देश

इस प्रकरण में एक पिता ने, जो व्हीलचेयर पर आया था, आरोप लगाया कि उसका बेटा और बहु उसे मानसिक और शारीरिक तौर पर परेशान कर रहे हैं। लेकिन डीएम ने पूरे मामले की सुनवाई के बाद पाया कि पिता सक्षम है और अपनी आय से अपने परिवार को सपोर्ट कर सकता है। इस दरम्यान, डीएम ने यह भी कहा कि महज उम्र बढ़ने से कोई भी अपने बच्चों को बेघर करने का हकदार नहीं है।

भरण पोषण अधिनियम का दुरुपयोग

जिलाधिकारी द्वारा सुनवाई के दौरान यह भी सामने आया कि पिता स्वयं एक राजपत्रित अधिकारी सेवानिवृत्त हैं और उनकी कुल मासिक आय 55,000 रुपए है। वहीं, उनके बेटे अमन की आय केवल 25,000 रुपए है। डीएम ने इस मामले को बेहद संवेदनशील ठहराते हुए दोनों पक्षों को सुनकर फैसला सुनाया कि पिता द्वारा दी गई याचिका झूठी साबित हुई है।

न्याय के लिए जिला प्रशासन का सख्त रवैया

जिलाधिकारी ने अपने निर्णय में कहा कि यह एक उदाहरण है कि किस तरह से लोग अपने स्वार्थ के लिए भरण पोषण अधिनियम का दुरुपयोग करते हैं। इस निर्णय ने कानून की आड़ में निर्दोष लोगों को परेशान करने वालों के खिलाफ एक सख्त संदेश भेजा है। डीएम ने एसएसपी को भी इस परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं।

इंसानियत की जीत

इस मामले में त्वरित न्याय प्रदान कर जिलाधिकारी ने साबित कर दिया कि जब बात मानवता और न्याय की आती है, तो कोई भी तर्क अस्वीकृत किया जा सकता है। दोनों पक्षों को समझाने का प्रयास किया गया और अंततः न्याय की जीत हुई।

जिलाधिकारी के इस फैसले से समाज में यह संदेश जाएगा कि वे लोग जो अपने हित के लिए अपने बच्चों को घर से बेदखल करने का प्रयास करते हैं, उन्हें ऐसे मामलों में उचित न्याय का सामना करना पड़ सकता है। इस तरह के मामलों पर प्रशासन की नजर बनी रहेगी, जिससे मानवाधिकारों की रक्षा हो सके।

निष्कर्ष

महज उम्र बढ़ने से दूसरों के अधिकार छीनना गलत है और इस पर कार्रवाई के लिए प्रशासन को सजग रहना चाहिए। जिले के इस मामले ने समाज को एक गंभीर संदेश दिया है कि कानून का दुरुपयोग किसी के भी लिए खतरा बन सकता है। लोगों को यह समझना होगा कि लाचार और असहाय व्यक्तियों के अधिकारों का सम्मान किया जाना चाहिए।

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इस खबर को लिखा है: सुषमा शर्मा, सुलभा राॅय, दीप्ति गुप्ता और ये सब हैं टीम asarkari।

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