“सिंधु की पुकार: संप्रभुता की वापसी और गौरव की बहाली”

Aug 22, 2025 - 18:30
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“सिंधु की पुकार: संप्रभुता की वापसी और गौरव की बहाली”
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सिंधु की पुकार: संप्रभुता की वापसी और गौरव की बहाली

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लेखिका: स्नेहा शर्मा, राधिका वर्मा, टीम asarkari

भूमिका

भारत के केंद्रीय विधि एवं न्याय राज्यमंत्री श्री अर्जुन राम मेघवाल ने हाल ही में मानसून सत्र के दौरान सिंधु जल संधि का जिक्र करते हुए भारत की संप्रभुता और गौरव की बहाली पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि मानसून का मौसम न केवल खुशियों और गर्व का संचार करता है, बल्कि यह नवाचार और नवीनीकरण का प्रतीक भी है। भारत की भौगोलिक स्थिति और प्रचुर वर्षा, जल संसाधनों की उपलब्धता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

सिंधु जल संधि का महत्व

सिंधु जल संधि (IWT) 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता से भारत और पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षरित हुई। इसके तहत भारत को सिंधु नदी प्रणाली के जल का 80% पाकिस्तान को आवंटित करना पड़ा। इस संधि ने भारत की जल संसाधनों पर नियंत्रण को कमजोर कर दिया, जिससे भारतीय क्षेत्रों में जल संकट गहरा गया। पंजाब, हरियाणा और राजस्थान जैसे क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन और सूखाग्रस्त स्थितियों ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है।

क्यूं महत्व रखता है यह मुद्दा?

श्री मेघवाल ने इस मामले पर चर्चा करते हुए कहा कि कई वर्षों से विपक्ष ने देश के हितों को तिलांजली देकर राजनीतिक स्वार्थ को प्राथमिकता दी है। स्वार्थी नीतियों ने राष्ट्रीय विकास को बाधित किया है। जनहित की कीमत पर तुष्टिकरण की नीति ने भारतीय मूल्यों और संप्रभुता को कमजोर किया है।

मौजूदा स्थिति

प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में, भारत ने इस ऐतिहासिक भूल को सुधारने के लिए एक निर्णायक कदम उठाया है। सरकार अब सिंधु जल संधि का स्थगन कर राष्ट्रीय हितों के विरोध में उठाए गए कदमों को वापस लेने की दिशा में अग्रसर है। मोदी जी ने स्पष्ट किया है कि आतंकवाद और बातचीत साथ नहीं चल सकते।

निष्कर्ष

भारत की जल संप्रभुता और गौरव की बहाली का यह कदम केवल एक कूटनीतिक निर्णय नहीं है, बल्कि यह सामान्य जनता की पानी, खाद्य और आर्थिक सुरक्षा के लिए एक ठोस कदम है। यह स्पष्ट संदेश है कि भारत अपने संसाधनों की रक्षा के लिए तत्पर है और इसे किसी भी कीमत पर छोड़ने का इरादा नहीं रखता।

इस स्थगन का परिणाम यह होगा कि भारत अपने जल संसाधनों पर फिर से नियंत्रण प्राप्त कर सकता है, जिससे कृषि और औद्योगिक विकास में तेजी आ सकती है। भारत के लिए यह एक नई शुरुआत है जो आत्मनिर्भरता की दिशा में मजबूत कदम है।

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