बारिश और बच्चे : सावधानी, देखभाल और संरक्षण का मौसम – डॉ. बृज मोहन शर्मा

बारिश और बच्चे : सावधानी, देखभाल और संरक्षण का मौसम – डॉ. बृज मोहन शर्मा
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“वर्षति पृथिवीं यत्र, जीवनस्य शुभारंभः। शुद्धा चेत् सा वृष्टिरेव, दूषिता तु भवेत् विषम्॥” ये शब्द डॉ. बृज मोहन शर्मा के हैं, जो यह स्पष्ट करते हैं कि वर्षा का संबंध केवल जल से नहीं, बल्कि जीवन में नए बदलाव लाने से भी है। जहाँ वर्षा होती है, वही जीवन का आरंभ होता है। यदि वर्षा शुद्ध होती है, तो वह अमृत समान होती है, लेकिन यदि प्रदूषण का प्रभाव हो तो वही विष का रूप ले लेती है।
सावधानी के उपाय
देहरादून: मानसून का मौसम बच्चों के लिए एक विशेष उत्सव की तरह होता है। बारिश की पहली बूंद जो बच्चों की जिंदगी में खुशी का संचार करती है। लेकिन इस उत्सव में कुछ सावधानियों की आवश्यकता होती है। बारिश के मौसम में बैक्टीरिया, वायरस और मच्छरों की संख्या बढ़ जाती है, जिससे बच्चों की सेहत पर खतरा मंडराता है।
त्वचा और फंगल संक्रमण से बचाव
बारिश में भीगने के बाद त्वचा को सही से सुखाना न केवल महत्वपूर्ण है, बल्कि यह फंगल संक्रमण से भी बचाता है। बच्चों को सूती और हल्के कपड़े पहनाना चाहिए। नीम की पत्तियों से बना गरम पानी उपयोगी होता है, जिससे संक्रमण का खतरा कम होता है।
सांस की बीमारियों से सावधानी
मानसून में तापमान में उतार-चढ़ाव से बच्चों को सांस की बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है, विशेष रूप से जिन बच्चों को दमा या एलर्जी होती है। उन्हें सुबह-शाम बाहर जाने से बचाना चाहिए। काढ़ा जैसे तुलसी, अदरक, और शहद का सेवन प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।
पानी की गुणवत्ता
गंदा पानी बच्चों को विभिन्न बीमारियों का शिकार बना सकता है। इसलिए बच्चों को केवल उबला या फ़िल्टर किया गया पानी ही देना चाहिए। बेल का शरबत और सौंफ-अजवाइन का पानी पाचन क्रिया को दुरुस्त रखने में सहायक होता है।
मच्छर जनित रोगों से बचाव
मच्छर जनित बीमारियों से बचाव के लिए घर और स्कूल के आसपास जल-जमाव को रोकना आवश्यक है। बच्चों के लिए पूरे बाजू के कपड़े पहनाने चाहिए और मच्छरदानी का उपयोग करना चाहिए। कमरे में कटोरी में साफ पानी रखना और ताज़ा गोबर का घोल मच्छरों को दूर रखता है।
बच्चों के लिए शिक्षा का अवसर
बारिश का मौसम केवल बीमारी का समय नहीं, बल्कि यह शिक्षा का भी समय है। इस दौरान बच्चों को जल संरक्षण, वृक्षारोपण, और जल चक्र के बारे में समझाया जा सकता है। वर्षा जल संचयन के मॉडल बनाकर उन्हें दिखाना चाहिए कि बारिश से नदियाँ और झीलें कैसे भरती हैं।
समाज की भूमिका
स्कूलों को चाहिए कि साफ़ पानी, स्वास्थ्य जांच और स्वच्छता की बेहतर व्यवस्था करें। स्थानीय प्रशासन को जल जमने से रोकने के लिए कार्य करना चाहिए। स्वयंसेवी संगठनों को सफाई और पर्यावरण की शिक्षा के लिए अभियान चलाना चाहिए।
अंततः, यह जरूरी है कि हम सावधानी और आनंद का संतुलन बनाए रखें। बच्चों को सावधानी से प्राकृतिक अनुभव करने देना आवश्यक है। मानसून केवल एक ऋतु नहीं है; यह अनुभव, संवेदना, और समझ का समय है। बारिश की पहली बूंद जब जमीन को छूए, तो हम सावधानी की छतरी लेकर चलें, लेकिन बच्चों को बारिश में नाचने से कभी न रोकें।
“वर्षा की बूँदें जब धरती से टकराती हैं, नई उम्मीदें, नया जीवन जगाती हैं।” - सुमित्रानंदन पंत
लेखिका: टीम asarkari
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