सिर्फ 2.40 घंटे चला विधानसभा सत्र, यशपाल आर्य, प्रीतम सिंह का कार्यमंत्रणा समिति से इस्तीफा, सरकार पर लगाए तानाशाही के आरोप

Aug 20, 2025 - 18:30
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सिर्फ 2.40 घंटे चला विधानसभा सत्र, यशपाल आर्य, प्रीतम सिंह का कार्यमंत्रणा समिति से इस्तीफा, सरकार पर लगाए तानाशाही के आरोप
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रैबार डेस्क: ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में आयोजित विधानसभा का मॉनसून सत्र महज डेढ़ दिन में खत्म हो गया। हंगामे के कारण इस सत्र में केवल 2 घंटे 40 मिनट की ही कार्यवाही हो पाई। इस समय सीमा में ही भाजपा की सरकार पर विपक्ष ने तानाशाही के गंभीर आरोप लगाए हैं। नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य और कांग्रेस विधायक प्रीतम सिंह ने कार्यमंत्रणा समिति में से इस्तीफा देकर यह संदेश दिया कि वे सरकार की कार्यशैली से असंतुष्ट हैं।

सत्र की कार्यप्रणाली पर सवाल

नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य और प्रीतम सिंह का कहना है कि पिछले कई विधानसभा सत्रों में कार्यमंत्रणा समिति में केवल संख्या बल के आधार पर निर्णय लिए जा रहे हैं। उनके अनुसार, इस बार भी के कार्यक्रम से पहले सभी सदस्यों को मॉनसूत्र सत्र का संभावित कार्य सूची भेजा गया था, लेकिन सत्र के दौरान हुए हंगामे के कारण महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा नहीं हो सकी।

इस्तीफे का कारण

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से की गई बैठक में प्रीतम सिंह ने कहा, "आज 20 अगस्त को दोपहर बाद सत्र को अनिश्चित काल के लिए अवसान कर दिया गया। यह निर्णय चिंताजनक है। सरकार को पहले कार्यमंत्रणा समिति की बैठक बुलानी चाहिए थी।” इस अवसान का वैध कारण नहीं समझते हुए दोनों नेताओं ने स्पष्ट किया कि जब कार्यमंत्रणा समिति में सभी फैसले एकतरफा लिए जा रहे हैं, तब उनके लिए इस समिति में बने रहना उचित नहीं है।

सरकार के खिलाफ बढ़ते आरोप

विपक्ष का कहना है कि यह उत्तराखंड वासियों के साथ बड़ा धोखा है कि सदन दो दिनों के भीतर स्थगित कर दिया गया। उन्होंने आरोप लगाया है कि तानाशाही रवैये के चलते, वे के सदन के कार्यो में सक्रिय भागीदारी नहीं कर पा रहे हैं। यशपाल आर्य ने कहा कि जब कार्यमंत्रणा समिति के सदस्यों को विश्वास में नहीं लिया जा रहा, तो इसकी औचितता पर गंभीर सवाल उठता है।

क्या है कार्यमंत्रणा समिति का महत्व?

कार्यमंत्रणा समिति का मुख्य कार्य सदन की कार्यवाही और अन्य सरकारी मामलों के लिए समय आवंटित करना है जिससे कार्यवाही सुचारू ढंग से चल सके। ऐसे में, जब सदन की बैठकें बिना किसी कारण स्थगित की जाएं, तो यह कार्यमंत्रणा समिति की भूमिका को कमजोर करता है।

निष्कर्ष

उत्तराखंड विधानसभा का यह सत्र, जो केवल 2.40 घंटे चला, ने कई महत्वपूर्ण मुद्दों को अनसुलझा छोड़ दिया है और सरकार पर गंभीर आरोपों का बाना दिया है। इस हालात में जहां तानाशाही की बात की जा रही है, वहीं सदन की कार्यवाही को प्रभावी बनाने के लिए कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने एकजुट होकर आवाज उठाने का निर्णय लिया है। भविष्य में ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे, यह देखना दिलचस्प होगा।

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