SC का अहम फैसला- ST महिला को भी पैतृक संपत्ति में भाइयों की तरह समान हिस्सा पाने का अधिकार…

SC का अहम फैसला- ST महिला को भी पैतृक संपत्ति में भाइयों की तरह समान हिस्सा पाने का अधिकार…
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है जिसमें उसने कहा है कि अनुसूचित जनजाति (ST) समुदाय की महिला को भी अपने भाइयों की तरह पैतृक संपत्ति (Ancestral Property) में समान हिस्सा पाने का अधिकार है। इस फैसले ने न केवल कानूनी दृष्टिकोण से बल्कि सामाजिक रूप से भी एक नई दिशा प्रदान की है।
फैसले की पृष्ठभूमि
सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने ST समुदाय की महिला धैया के कानूनी उत्तराधिकारी राम चरण और अन्य द्वारा दायर दीवानी अपील को स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया। पीठ ने यह भी कहा कि जब तक कानून में अन्यथा निर्दिष्ट न हो, महिला उत्तराधिकारी को संपत्ति में अधिकार से वंचित करना केवल लैंगिक विभाजन और भेदभाव को बढ़ाता है, जिसे कानून को दूर करना चाहिए।
महिलाओं के अधिकारों का संरक्षण
इस फैसले में यह स्पष्ट किया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होता है यदि किसी भी महिला को पैतृक संपत्ति में समान अधिकार से वंचित किया जाता है। न्यायालय ने अनुच्छेद 15(1) का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया है कि सरकार किसी भी व्यक्ति के साथ धर्म, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकती। इस निर्णय ने यह साबित किया है कि संविधान की उचित व्याख्या करने पर महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की जा सकती है।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम
सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के महत्व को भी रेखांकित किया, जिसने बेटियों को परिवार की संपत्ति में सह-उत्तराधिकारी बनाया। इस तरह का कदम स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि समाज में बदलाव आ रहा है और महिलाओं को भी अपने अधिकार प्राप्त हो रहे हैं। पीठ ने यह स्पष्ट करते हुए कहा कि किसी भी महिला को संपत्ति में हिस्सा देने से इनकार करना उनके अधिकारों का उल्लंघन है।
निचली अदालतों की धारणाएं
पीठ ने यह भी सुझाव दिया कि निचली अदालतें अक्सर इस गलत धारणा पर आगे बढ़ जाती हैं कि बेटियों को विरासत की हकदार नहीं माना जाएगा। ऐसे में इस फैसले ने एक स्पष्ट संदेश दिया है कि जब प्रथा मौन है, तो अपीलकर्ता को संपत्ति में हिस्सा देने से इनकार करना उनके समानता के अधिकार का उल्लंघन होगा।
निष्कर्ष
इस निर्णय के परिणामस्वरूप, ST महिलाओं के लिए एक नई उम्मीद जागृत हुई है, जो अब अपने अधिकारों के लिए लड़ सकती हैं। यह फैसला सिर्फ एक कानूनी निर्णय नहीं है, बल्कि यह सामाजिक न्याय की ओर एक बड़ा कदम है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में न केवल कानूनी मामलों को संबोधित किया, बल्कि यह भी दर्शाया कि समाज में लैंगिक समानता की बात एक जरूरी कदम है।
इस प्रकार, यह फैसला न केवल वर्तमान में, बल्कि भविष्य में भी ST महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित करेगा। लोगों को इस दिशा में जागरूक होना होगा ताकि समाज में समानता की भावना को और बढ़ावा मिल सके।
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लेखिका: राधिका शर्मा और माया रानी, टीम asarkari
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