उत्तराखंड में महिलाओं की लावारिस लाशों पर कांग्रेस ने उठाए सवाल।

उत्तराखंड में महिलाओं की लावारिस लाशों पर कांग्रेस ने उठाए सवाल
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उत्तराखंड में हाल के वर्षों में बड़ी संख्या में लावारिस महिला शवों की खबरें सामने आई हैं, जो एक गंभीर सामाजिक और प्रशासनिक समस्या की ओर इशारा करती हैं। पिछले पांच वर्षों में राज्य में 318 महिला शव मिले, जिनमें से 231 की पहचान अब तक नहीं हो पाई है। यह आंकड़ा न केवल सिस्टम की खामियों को उजागर करता है, बल्कि महिला सुरक्षा और अपराध की रोकथाम पर सवाल भी उठाता है।
कांग्रेस का आरोप
उत्तराखंड में इन लावारिस शवों को लेकर अब कांग्रेस ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाना शुरू कर दिया है। प्रदेश कांग्रेस संगठन के उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने एक प्रेस वार्ता के दौरान कहा कि “प्रदेश में महिलाओं की लावारिस लाशें मिल रही हैं, जो यह दर्शाती हैं कि सिस्टम में कितनी खामियाँ हैं।” धस्माना का यह भी कहना है कि इतनी बड़ी संख्या में लावारिस लाशों का मिलना कहीं न कहीं यह सवाल उठाता है कि महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सरकार कितनी गंभीर है।
महिलाओं की सुरक्षा पर सवालिया निशान
यह आंकड़े न केवल अधिकारीयों की लापरवाही को इंगित करते हैं, बल्कि समाज की भी समस्याओं की ओर इंगित करते हैं, जहाँ महिलाओं की सुरक्षा एक बड़ी चिंता का विषय बन गई है। धस्माना ने और भी सवाल उठाए हैं, जैसे कि क्या सरकार ने इस समस्या को हल करने के लिए कोई ठोस कदम उठाए हैं? क्या पुलिस और प्रशासन इस मुद्दे पर गंभीर हैं?
सरकार का क्या कहना है?
सरकार ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है, जो लाखों लोगों के लिए चिंता का विषय है। राज्य में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों के आंकड़े भी चिंताजनक हैं। ऐसे में सभी की नजरें इस बात पर टिकी हैं कि सरकार इस गंभीर समस्या का समाधान कैसे करती है।
समाज का नजरिया
महिलाओं की लावारिस लाशों की बढ़ती संख्या ने समाज में एक बड़ा सवाल खड़ा किया है - “क्या हम अपने समाज में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर संवेदनशील हैं?” कई सामाजिक कार्यकर्ता और महिला अधिकार संगठन इस मुद्दे पर सक्रिय हो गए हैं। उन्हें लगता है कि प्रशासन को महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
निष्कर्ष
उत्तराखंड में महिलाओं की लावारिस लाशों का मिलना निश्चित रूप से किसी भी समाज के लिए चिंताजनक है। इस स्थिति को सुधारने की आवश्यकता है ताकि अगली पीढ़ी सुरक्षित रह सके। अब यह देखना होगा कि सरकार और प्रशासन इस मुद्दे को नजरअंदाज करते हैं या इसके समाधान के लिए ठोस दिषा में कदम उठाते हैं। महिला सुरक्षा का यह मामला केवल एक राजनीतिक बहस नहीं, बल्कि समाज की नैतिकता और जिम्मेदारी का भी प्रश्न है।
अंत में, हमें यह समझना होगा कि केवल सरकार नहीं, बल्कि समाज के हर सदस्य को इस दिशा में सक्रिय रूप से काम करना होगा।
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